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Rashmirathi (Jnanpith Award Winner,1972 ) (Hindi) by Ramdhari Singh Dinkar
Rashmirathi (Jnanpith Award Winner,1972 ) (Hindi) by Ramdhari Singh Dinkar
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Rashmirathi (Sun's Charioteer) (Rashmi: Light (rays), Rathi: One who is riding a chariot (not the charioteer)). रश्मि: लाइट ( सूर्य किरण), रथी: रथ पर सवार होकर ( जो सारथी नहीं है), एक हिंदी महाकाव्य है, वह 1952 में हिंदी कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा लिखी गई थी। यह कर्ण के जीवन के आसपास केंद्रित है, जो महाकाव्य महाभारत में अविवाहित कुंती (पांडु की पत्नी) का पुत्र था। यह "कुरुक्षेत्र" और आधुनिक हिंदी साहित्य की क्लासिक्स के अलावा दिनकर की सबसे प्रशंसित कार्यों में से एक है।कर्ण कुंती का ज्येष्ठ पुत्र था, जिसे जन्म में छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें कुंती की शादी से पहले अवगत कराया गया था। कर्ण एक नीच परिवार में बड़ा हुआ, फिर भी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक बन गया। कौरवों की ओर से कर्ण की लड़ाई पांडवों के लिए एक बड़ी चिंता थी क्योंकि वह युद्ध में अजेय होने के लिए प्रतिष्ठित था। जिस तरह से दिनकर ने नैतिक दुविधाओं में फंसे मानव भावनाओं के सभी रंगों के साथ कर्ण की कहानी प्रस्तुत की है, वह सिर्फ अद्भुत है। लय और मीटर झुकाव कर रहे हैं शब्दों की पसंद और भाषा की शुद्धता प्राणपोषक है।अनुराग कश्यप द्वारा 2009 में निर्देशित हिंदी फिल्म "गुलाल" को दिनकर की कविता "यहीं देख गगन मुंह में हुई है" (भाग का "कृष्ण की चेतवानी") "रश्मिरथी अध्याय 3" से पियुष मिश्र द्वारा प्रस्तुत किया गया है।Extract published through special arrangement with the publisher“वर्षों तक वन में घूम-घूम,बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर।सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें, आगे क्या होता है।मैत्री की राह बताने को,सबको सुमार्ग पर लाने को,दुर्योधन को समझाने को,भीषण विध्वंस बचाने को,भगवान् हस्तिनापुर आये,पांडव का संदेशा लाये।‘दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशीष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,भूमंडल वक्षस्थल विशाल,भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,सब हैं मेरे मुख के अन्दर।‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,शत कोटि दण्डधर लोकपाल।जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।‘भूलोक, अतल, पाताल देख,गत और अनागत काल देख,यह देख जगत का आदि-सृजन,यह देख, महाभारत का रण,मृतकों से पटी हुई भू है,पहचान, इसमें कहाँ तू है।‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,पद के नीचे पाताल देख,मुट्ठी में तीनों काल देख,मेरा स्वरूप विकराल देख।सब जन्म मुझी से पाते हैं,फिर लौट मुझी में आते हैं।‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,साँसों में पाता जन्म पवन,पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,हँसने लगती है सृष्टि उधर!मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,छा जाता चारों ओर मरण।‘बाँधने मुझे तो आया है,जंजीर बड़ी क्या लाया है?यदि मुझे बाँधना चाहे मन,पहले तो बाँध अनन्त गगन।सूने को साध न सकता है,वह मुझे बाँध कब सकता है?‘हित-वचन नहीं तूने माना,मैत्री का मूल्य न पहचाना,तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।याचना नहीं, अब रण होगा,जीवन-जय या कि मरण होगा।‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,फण शेषनाग का डोलेगा,विकराल काल मुँह खोलेगा।दुर्योधन! रण ऐसा होगा।फिर कभी नहीं जैसा होगा।‘भाई पर भाई टूटेंगे,विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।आखिर तू भूशायी होगा,हिंसा का पर, दायी होगा।’थी सभा सन्न, सब लोग डरे,चुप थे या थे बेहोश पड़े।केवल दो नर ना अघाते थे,धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।कर जोड़ खड़े प्रमुदित,निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’! “
